भारत की आर्थिक स्थिति 2025–26: 7% GDP वृद्धि, रिकॉर्ड-निम्न मुद्रास्फीति और विकास के अवसर
भारत की आर्थिक तस्वीर 2025–26: वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच विकास के संकेत
Updated on: November 19, 2025
By Pathprerna News Desk
वैश्विक मंदी, व्यापार तनाव और मुद्रास्फीति के दबाव के बीच, भारत 2025–26 में अपेक्षाकृत मजबूत और स्थिर आर्थिक विकास की कहानी प्रस्तुत करता दिख रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) और घरेलू रेटिंग एजेंसियों के ताज़ा अनुमानों के अनुसार, भारत की वास्तविक GDP वृद्धि 6.5–7% के बीच रहने की संभावना है, जबकि RBI ने अपने अनुमानों को 6.8% तक बढ़ाया है।
यह तस्वीर और दिलचस्प होती है जब अक्टूबर 2025 में खुदरा मुद्रास्फीति केवल 0.25% रही, जो पिछले वर्षों के तुलनात्मक आधार पर सबसे कम है।
| Quarterly GDP growth of India FY26 in bar chart format |
विकास के प्रमुख स्तंभ: खपत, पूंजीगत खर्च और सेवा क्षेत्र
1. निजी खपत
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रिकॉर्ड-निम्न मुद्रास्फीति से वास्तविक आय में वृद्धि।
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ग्रामीण मजदूरी और गैर-कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार।
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कर राहत और GST सुधार के बाद मध्यम वर्ग की खपत में तेजी।
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FY26 की दूसरी तिमाही में PFCE वृद्धि लगभग 8% रही।
2. सार्वजनिक पूंजीगत खर्च (Public Capex)
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सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर, रक्षा उत्पादन और हरित ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाया।
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प्रमुख परियोजनाएँ: हाईवे, रेल, मेट्रो, लॉजिस्टिक्स पार्क और नवीकरणीय ऊर्जा।
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पूंजीगत खर्च से न केवल निर्माण क्षेत्र, बल्कि निजी निवेश और रोजगार पर भी मल्टीप्लायर प्रभाव।
3. सेवा क्षेत्र
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IT/ITeS, डिजिटल प्लेटफॉर्म, फिनटेक, पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्रों में मजबूत प्रदर्शन।
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महामारी के बाद डिजिटल सेवाओं और घरेलू उपभोग में तेजी।
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UPI, ई-कॉमर्स और फिनटेक नवाचारों से उपभोग और औपचारिककरण में वृद्धि।
रिकॉर्ड-निम्न मुद्रास्फीति: अवसर या चेतावनी?
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CPI केवल 0.25% → खाद्य कीमतों में गिरावट, GST कटौती और वैश्विक कमोडिटी की नरमी मुख्य कारण।
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Core inflation (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) लगभग 4.3% → संकेत कि बुनियादी मांग स्थिर।
RBI नीति और दुविधा
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CPI लक्ष्य 2–6% के बीच → चर्चा में 25 बेसिस पॉइंट्स की रेट कट संभावना।
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अत्यधिक शीघ्र कटौती → वैश्विक कीमतों या मौसम से जुड़ी खाद्य मुद्रास्फीति के खतरे।
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उच्च वास्तविक ब्याज दरें → वृद्धि की गति पर असर।
वैश्विक चुनौतियाँ
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US-China व्यापार तनाव, यूरोपीय आर्थिक दबाव और मध्य-पूर्व के भू-राजनीतिक जोखिम।
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टैरिफ वृद्धि और वैश्विक मांग में अस्थिरता → निर्यात और निजी पूंजीगत खर्च प्रभावित।
संरचनात्मक चुनौतियाँ
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रोजगार सृजन, खासकर उच्च उत्पादकता वाले रोजगार, अभी भी चिंता का विषय।
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ग्रामीण आय में असमानता; कृषि क्षेत्र क्लाइमेट शॉक और सप्लाई चेन बाधाओं के प्रति संवेदनशील।
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राजकोषीय संतुलन → उच्च सार्वजनिक पूंजीगत खर्च और ऋण प्रबंधन में तालमेल आवश्यक।
सतत विकास के लिए रणनीति
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उत्पादक निवेश और सुधार
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निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए भूमि, श्रम और लॉजिस्टिक्स सुधार।
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PLI योजनाओं का कुशल क्रियान्वयन: इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो कंपोनेंट्स, ग्रीन टेक।
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मानव पूँजी और रोजगार
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स्किलिंग, डिजिटल साक्षरता और युवा कार्यबल उत्पादकता बढ़ाना।
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श्रम-गहन क्षेत्रों में प्रोत्साहन: वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन, निर्माण।
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मुद्रास्फीति और खाद्य प्रणाली सुधार
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क्लाइमेट-रेसिलिएंट खेती, सिंचाई और कोल्ड-चेन इंफ्रास्ट्रक्चर।
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घरेलू उत्पादन बढ़ाना: दालें, तेल वाले बीज और पेरिशेबल्स।
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समावेशी विकास और सामाजिक सुरक्षा
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लक्षित सब्सिडी, स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क।
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पिछड़े जिलों और ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान।
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निष्कर्ष
6.5–7% GDP वृद्धि और रिकॉर्ड-निम्न मुद्रास्फीति भारत के लिए “ब्राइट स्पॉट” हैं, लेकिन सतत और समावेशी विकास के लिए संरचनात्मक सुधार, निवेश, जलवायु-सहनशीलता और सामाजिक सुरक्षा आवश्यक।
Source: Public reports, official data, and verified open sources.
Category - Economy and Development
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