भारत में राष्ट्रपति की शक्तियाँ और प्रधानमंत्री की भूमिका: संवैधानिक दृष्टिकोण से एक विश्लेषण

भारत में राष्ट्रपति बनाम प्रधानमंत्री: किसके पास है असली शक्ति?
PATH PRERNA।
भारत का संविधान एक अद्भुत संतुलन प्रस्तुत करता है — जहाँ राष्ट्रपति राज्य का संवैधानिक प्रमुख है, वहीं प्रधानमंत्री सरकार का वास्तविक प्रमुख माना जाता है। दोनों पदों की शक्तियाँ और भूमिकाएँ न केवल शासन के ढांचे को परिभाषित करती हैं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली की आत्मा भी हैं।
🏛️ राष्ट्रपति की शक्तियाँ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 से 78 तक राष्ट्रपति के पद और शक्तियों का वर्णन किया गया है।
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाता है और वह देश के संवैधानिक प्रमुख (Constitutional Head) के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रपति की प्रमुख शक्तियाँ:
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कार्यकारी शक्तियाँ: सभी कार्यकारी कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं।
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विधायी शक्तियाँ: संसद का सत्र बुलाना, स्थगित करना और बिलों पर हस्ताक्षर करना।
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न्यायिक शक्तियाँ: दया याचिका स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार।
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सैन्य शक्तियाँ: भारत के सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर।
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आपातकालीन शक्तियाँ: अनुच्छेद 352, 356 और 360 के अंतर्गत राष्ट्र, राज्य या वित्तीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं।
हालाँकि, राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है — यही भारतीय संसदीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है।
👔 प्रधानमंत्री की भूमिका
प्रधानमंत्री सरकार का वास्तविक प्रमुख (Real Executive Head) होता है।
वह मंत्रिपरिषद का नेता, संसद में सत्तारूढ़ दल का चेहरा और नीतियों का निर्माता है।
प्रधानमंत्री की मुख्य भूमिकाएँ:
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मंत्रिपरिषद के कार्यों का समन्वय।
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नीति निर्माण और निर्णय लेने की दिशा तय करना।
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राष्ट्रपति को सभी प्रशासनिक मामलों की जानकारी देना।
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संसद में सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की नीतियों का नेतृत्व करना।
⚖️ दोनों के बीच संतुलन
भारतीय व्यवस्था में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच संबंध ‘संवैधानिक संतुलन’ का उदाहरण हैं।
राष्ट्रपति औपचारिक प्रमुख है, जबकि प्रधानमंत्री प्रशासनिक शक्ति का केंद्र है।
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था —
“राष्ट्रपति भारत के राज्य प्रमुख होंगे, परंतु वे ब्रिटेन के राजा की भाँति शासन नहीं करेंगे, बल्कि ब्रिटेन के राजा की भाँति केवल संवैधानिक प्रतीक रहेंगे।”
🧩 निष्कर्ष
भारत का लोकतंत्र इसी बात पर टिका है कि राष्ट्रपति संविधान की मर्यादा बनाए रखे और प्रधानमंत्री शासन की दिशा निर्धारित करे।
दोनों पद एक-दूसरे के पूरक हैं — और यही संतुलन भारतीय गणराज्य की स्थिरता और मजबूती का आधार है।
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